SAKAT CHAUTH
माघ कृष्ण तृतीय
माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी सकट चौथ कहलाती है। इसे वक्रतुण्डी चतुर्थी, माही चौथ अथवा तिलकुटा चौथ आदि नामो से भी जाना जाता है। इस दिन सकट हरण भगवान गणेश तथा चन्द्रमा की पूजा की जाती है। अपने संतान की दीर्घायु और सुखद भविष्य के लिए सभी पुत्रवति स्त्रियाँ इस व्रत को रखती हैं।
व्रत विधान -
इस दिन स्त्रियाँ निर्जल व्रत करती हैं। पटरे पर मिट्टी की डली को गौरी-गणेशजी के रूप में रखकर उनकी पूजा की जाती है। इन गौरी-गणेश को अगले वर्ष के लिए भी संभाल कर रखा जाता है। जब तक ये खंड़ित (टूट) न हो जाएँ, इन्ही से पूजा की जाती है। प्रशाद के रुप में तिल तथा गुड़ का बना लड्डु और शकरकंदी चढ़ायी जाती है। अग्नि की सात बार परिक्रमा की जाती है तथा कथा सुनने के बाद लोटे में भरा जल चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। कही-कही तिल को भून कर गुड के साथ कूटा जाता है । इससे तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है। तो कहीं तिलकुट का बकरा बनाकर उसकी पूजा करके घर का कोई बालक उसकी चाकू से गर्दन काटता है ।
व्रत कथा –
एक बार राक्षसों से भयभीत होकर देवता भगवान शंकर की शरण में गए। उस समय भगवान शिव के पास भगवान कार्तिकेय तथा गणेश भी उपस्थित थे। शिवजी ने दोनों से पूछा - तुममे से कौन देवताओं के कष्ट समाप्त करेगा।
तब कार्तिकेय और गणेश दोनो ही जाने की इच्छा प्रकट की। ऐसा जान मुस्कारते हुए शिव ने दोनो बालको को पृथ्वी की परिक्रमा करने को कहा तथा यह शर्त रखी - जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके आ जाएगा, वही सबसे वीर तथा सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया जाएगा।
ऐसा सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिए। इधर गणेश जी के लिए चूहे के बल पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना असम्भव था। इसलिए वे सात बार माता-पिता की परिक्रमा करके बैठ गए।
उधर रास्ते में कार्तिकेय को पूरे पृथ्वी मण्डल में उनके आगे चूहे के पद चिन्ह दिखाई दिए। परिक्रमा करके लौटने पर निर्णय की बारी आई। तब कार्तिकेय जी ने स्वयं को विजेता बताया। इस पर गणेश ने भगवान शिव से कहा माता-पिता में ही समस्त तीर्थ निहित है। इसलिए मैने आपकी सात बार परिक्रमा की है।
गणेश जी की बात सुनकर समस्त देवताओं तथा गौरी-शंकर ने गणेश की भरपूर प्रशंसा की तथा आशीर्वाद दिया की तीनों लोको में सर्व प्रथम तुम्हारी ही पूजा होगी।
तब शिव की आज्ञा पाकर गणेश जी ने देवताओं का सकट दूर किया। चन्द्रमा से गणेश जी के विजय का समाचार सुनकर भगवान शंकर ने चन्द्रमा को वरदान दिया कि चौथ के दिन चन्द्रमा पूरे विश्व को शीतलता प्रदान करेगा। जो स्त्री पुरुष इस तिथि पर चन्द्रमा का पूजन तथा चन्द्रमा को अर्घ्य देगा उसे एश्वर्य, पुत्र, सौभाग्य की प्राप्ति होगी।
माना जाता है तभी से पुत्रवती माताएँ पुत्र तथा पति की सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं।