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ASHTA VINAYAK MANTRA

अष्टविनायक मंत्र

मुद्गल पुराण के अनुसार भगवान् गणेश के अनेकों अवतार हैं, जिनमें आठ अवतार प्रमुख हैं। पहला अवतार भगवान् वक्रतुण्ड का है।
वक्रतुण्ड
वक्रतुण्डावतारश्च देहानां ब्रह्मधारकः ।
मत्सरासुरहन्ता स सिंहवाहनगः स्मृतः ।।
भगवान् श्रीगणेश का 'वक्रतुण्डावतार ' ब्रह्मरुप से सम्पूर्ण शरीरों को धारण करने वाला, मत्सरासुर का वध करने वाला तथा सिंह वाहन पर चलने वाला है ।

एकदन्त
एकदन्तावतारौ वै देहिनां ब्रह्मधारकः ।
मदासुरस्य हन्ता स आखुवाहनगः स्मृतः ।।
भगवान् गणेश का ' एकदन्तावतार ' देहि - ब्रह्म का धारक है, वह मदासुर का वध करने वाला है. उनका वाहन मूषक बताया गया है.

महोदर
महोदर इति ख्यातो ज्ञानब्रह्मप्रकाशकः ।
मोहसुरस्य शत्रुर्वै आखुवाहनगः स्मृतः ।।
भगवान् श्रीगणेश का ‘ महोदर ’ नाम से विख्यात अवतार ज्ञान ब्रह्म का प्रकाशक है।  उन्हें मोहासुर का विनाशक तथा उनका मूषक - वाहन बताया बताया गया है।

गजानन
गजाननः स विज्ञेयः सांख्येभ्य सिद्धिदायकः ।
लोभासुरप्रहर्ता वै आखुगश्च प्रकीर्तितः ।।
भगवान् श्रीगणेश का  ‘ गजानन ’ नामक अवतार सांख्यब्रह्म का धारण है। उसको सांख्य योगियों के लिए सिद्धिदायक जानना चाहिये। यह अवतार लोभासुर का संहारक तथा मूषक वाहन पर चलने वाला कहा गया है।

लम्बोदर
लम्बोदरावतारो वै क्रोधासुर निबर्हणः ।
शक्तिब्रह्माखुगः सद् यत् तस्य धारक उच्यते ।।
भगवान् श्रीगणेश का  ‘ लम्बोदर  ’ नामक अवतार सत्स्वरुप तथा शक्तिब्रह्म का धारक है। इनका भी वाहन मूषक है।

विकट
विकटो नाम विख्यातः कामासुरविदाहकः ।
मयूरवाहनश्चायं सौरब्रह्मधरः स्मृतः ।।
भगवान् श्रीगणेश का  ‘ विकट ’ नामक प्रसिद्ध अवतार कामासुर का संहारक है। वह मयूर वाहन एवं सौरब्रह्म का धारक माना गया है।

विघ्नराज
विघ्नराजावतारश्च शेषवाहन उच्यते ।
ममतासुर हन्ता स विष्णुब्रह्मेति वाचकः ।।
भगवान् श्रीगणेश का ‘ विघ्नराज ’ नामक अवतार विष्णु ब्रह्म का वाचक है। वह शेषवाहन पर चलने वाला तथा ममतासुर का संहारक है।  

धूम्रवर्ण
धूम्रवर्णावतारश्चभिमानासुरनाशकः ।
आखुवाहन एवासौ शिवात्मा तु स उच्यते ।।
भगवान् श्रीगणेश का  ‘ धूम्रवर्ण  ’ नामक अवतार अभिमानासुर का नाश करने वाला है, वह शिवब्रह्म-स्वरुप है। उसे भी मूषक वाहन कहा गया है।

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