RAMAVTAR AARTI
आरती श्री रामावतार जी की
भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुतरुप बिचारी ।।
लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आयुध भुज चारी ।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभा सिंधु खरारी ।। 1 ।।
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि विधि करौं अनंता ।
माया गुन ब्यानातति अमाना वेद पुरान भजंता ।।
करुना दुख सागर , सब गुन आगर , जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्री कंता ।। 2 ।।
ब्रह्माण्ड़ निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति वेद कहै ।
मम उर सो बासी , यह उपहासी , सुनत धीर मति थिर नरएँ है ।।
उपजा जब ग्याना , प्रभु मुसुकाना , चरित बहुत विधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रमे लहैं ।। 3 ।।
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रुपा ।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ।।
सुनि वचन सुजाना , रोदन ठाना होई बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते नपरहिं भवकूपा ।। 4 ।।