CHHATRAPATI SHIVAJI MAHAHRAJ JAYANTI
फाल्गुन कृष्ण अष्टमी
शिवाजी भोंसले ,जिन्हें छत्रपति शिवाजी के नाम से जाना जाता है ,एक भारतीय योधा और मराठा वंश के सदस्य थे | शिवाजी ने आदिलशाही सल्तनत की अधीनता स्वीकार ना करते हुए उनसे कई लड़ाईयां की थी | शिवाजी ने गुर्रील्ला पद्दति से कई युद्ध जीते | इन्हें आद्य-राष्ट्रवादी और हिन्दूओ का नायक भी माना जाता है |1674 में का राज्याभिषेक हुआ और उन्हें छत्रपति का ख़िताब मिला | आइये उनकी जीवनी को विस्तार से पढ़ते है
शिवाजी का प्रारभिक जीवन
शिवाजी का जन्म 1627 में पुणे जिले के जुनार शहर में शिवनेरी दुर्ग में हुआ | इनकी जन्मदिवस पर विवाद है लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने 19 फरवरी 1630 को उनका जन्मदिवस स्वीकार किया है | उनकी माता ने उनका नाम भगवान शिवाय के नाम पर शिवाजी रखा जो उनसे स्वस्थ सन्तान के लिए प्रार्थना करती रहती थी |शिवाजी के पिताजी शाहजी भोंसले एक मराठा सेनापति थे जो डेक्कन सल्तनत के लिए काम करते थे | की माँ जीजाबाई सिंधखेड़ के लाखूजीराव जाधव की पुत्री थी | शिवाजी के जन्म के समय डेक्कन की सत्ता तीन इस्लामिक सल्तनतो बीजापुर , अहमदनगर और गोलकोंडा में थी | शाहजी अक्सर अपनी निष्ठा निजामशाही ,आदिलशाह और मुगलों के बीच बदलते रहते थे लेकिन अपनी जागीर हमेशा पुणे ही रखी और उनके साथ उनकी छोटी सेना भी रहती थी |
शिवाजी अपनी माँ जीजाबाई से बेहद समर्पित थे जो बहुत ही धार्मिक थी | धार्मिक वातावरण ने शिवाजी पर बहुत गहरा प्रभाव डाला था जिसकी वजह से महान हिन्दू ग्रंथो रामायण और महाभारत की कहानिया भी अपनी माता से सूनी | इन दो ग्रंथो की वजह से वो जीवनपर्यन्त हिन्दू महत्वो का बचाव करते रहे | इसी दौरान शाहजी ने दूसरा विवाह किया और उनकी दुसरी पत्नी तुकाबाई के साथ शाहजी कर्नाटक में आदिलशाह की तरफ से सैन्य अभियानो के लिए चले गये | उन्होंने शिवाजी और जीजाबाई को छोडकर उनका सरंक्षक दादोजी कोंणदेव को बना दिया | दादोजी ने शिवाजी को बुनियादी लड़ाई तकनीके जैसे घुड़सवारी, तलवारबाजी और निशानेबाजी सिखाई |
शिवाजी बचपन से ही उत्साही योद्धा थे हालांकि इस वजह से उन्हें केवल औपचारिक शिक्षा दी गयी जिसमे वो लिख पढ़ नही सकते थे लेकिन फिर भी उनको सुनाई गई बातो को उन्हें अच्छी तरह याद रहता था |शिवाजी ने मावल क्षेत्र से अपने विश्वस्त साथियो और सेना को इकट्टा किया | मावल साथियों के साथ शिवाजी खुद को मजबूत करने और अपनी मातृभूमि के ज्ञान के लिए सहयाद्रि रेंज की पहाडियों और जंगलो में घूमते रहते थे ताकि वो सैन्य प्रयासों के लिए तैयार हो सके |
12 वर्ष की उम्र में शिवाजी को बंगलौर ले जाया गया जहा उनका ज्येष्ठ भाई साम्भाजी और उनका सौतेला भाई एकोजी पहले ही औपचारिक रूप से प्रशिक्षित थे का 1640 में निम्बालकर परिवार की सइबाई से विवाह कर दिया गया | 1645 में किशोर शिवाजी ने प्रथम बार हिंदवी स्वराज्य की अवधारणा दादाजी नरस प्रभु के समक्ष प्रकट की |
"शिवाजी का आदिलशाही सल्तनत के साथ संघर्ष
1645 में 15 वर्ष की आयु में शिवाजी ने आदिलशाह सेना को आक्रमण की सुचना दिए बिना हमला कर तोरणा किला विजयी कर लिया | फिरंगोजी नरसला ने शिवाजी की स्वामीभक्ति स्वीकार कर ली और शिवाजी ने कोंडाना का किले पर कब्जा कर लिया | कुछ तथ्य बताते है कि शाहजी को 1649 में इस शर्त पर रिहा कर दिया गया कि शिवाजी और संभाजी कोंड़ना का किला छोड़ देवे लेकिन कुछ तथ्य शाहजी को 1653 से 1655 तक कारावास में बताते है | शाहजी की रिहाई के बाद वो सार्वजनिक जीवन से सेवामुक्त हो गये और शिकार के दौरान 1645 के आस पास उनकी मृत्यु हो गयी | पिता की मौत के बाद शिवाजी ने आक्रमण करते हुए फिर से 1656 में पड़ोसी मराठा मुखिया से जावली का साम्राज्य हथिया लिया |
1659 में आदिलशाह ने एक अनुभवी और दिग्गज सेनापति अफज़ल खान को शिवाजी को तबाह करने के लिए भेजा ताकि वो क्षेत्रीय विद्रोह को कम कर देवे | 10 नवम्बर 1659 को वो दोनों प्रतापगढ़ किले की तलहटी पर एक झोपड़ी में मिले | इस तरह का हुक्मनामा तैयार किया गया था कि दोनों केवल एक तलवार के साथ आयेगे | शिवाजी को को संदेह हुआ कि अफज़ल खान उन पर हमला करने की रणनीति बनाकर आएगा इसलिए शिवाजी ने अपने कपड़ो के नीचे कवच, दायी भुजा पर छुपा हुआ बाघ नकेल और बाए हाथ में एक कटार साथ लेकर आये | तथ्यों के अनुसार दोनों में से किसी एक ने पहले वार किया , मराठा इतिहास में अफज़ल खान को विश्वासघाती बताया है जबकि पारसी इतिहास में शिवाजी को विश्वासघाती बताया है | इस लड़ाई में अफज़ल खान की कटार को शिवाजी के कवच में रोक दिया और शिवाजी के हथियार बाघ नकेल ने अफज़ल खान पर इतने घातक घाव कर दिए जिससे उसकी मौत हो गयी | इसके बाद शिवाजी ने अपने छिपे हुए सैनिको को बीजापुर पर हमला करने के संकेत दिए |
10 नवम्बर 1659 को प्रतापगढ़ का युद्ध हुआ जिसमे शिवाजी की सेना ने बीजापुर के सल्तनत की सेना को हरा दिया | चुस्त मराठा पैदल सेना और घुडसवार बीजापुर पर लगातार हमला करने लगे और बीजापुर के घुड़सवार सेना के तैयार होने से पहले ही आक्रमण कर दिया | मराठा सेना ने बीजापुर सेना को पीछे धकेल दिया | बीजापुर सेना के 3000 सैनिक मारे गये और अफज़ल खान के दो पुत्रो को बंदी बना लिया गया | इस बहादुरी से शिवाजी मराठा लोकगीतो में एक वीर और महान नायक बन गये | बड़ी संख्या में जब्त किये गये हथियारों ,घोड़ो ,और दुसरे सैन्य सामानों से मराठा सेना ओर ज्यादा मजबूत हो गयी | मुगल बादशाह औरंगजेब ने शिवाजी को मुगल साम्राज्य के लिए बड़ा खतरा मान लिया |
प्रतापगढ़ में हुए नुकसान की भरपाई करने और नवोदय मराठा शक्ति को हराने के लिए इस बार बीजापुर के नये सेनापति रुस्तमजमन के नेतृत्व में शिवाजी के विरुद्ध 10000 सैनिको को भेजा | मराठा सेना के 5000 घुड़सवारो की मदद से शिवाजी ने कोल्हापुर के निकट 28 दिसम्बर 1659 को धावा बोल दिया |आक्रमण को तेज करते हुए शिवाजी ने दुश्मन की सेना को मध्य से प्रहार किया और दो घुड़सवार सेना ने दोनों तरफ से हमला कर दिया | कई घंटो तक ये युद्ध चला और अंत में बीजापुर की सेना बिना किसी नुकसान के पराजित हो गयी और सेनापति रुस्तमजमन रणभूमि छोडकर भाग गया |आदिलशाही सेना ने इस बार 2000 घोड़े औउर 12 हाथी खो दिए |
1660 में आदिलशाह ने अपने नये सेनापति सिद्दी जौहर ने मुगलों के साथ गठबंधन कर हमले की तैयारी की | उस समय शिवाजी की सेना ने पन्हाला [वर्तमान कोल्हापुर ] में डेरा डाला हुआ था | सिद्दी जौहर की सेना किले से आपूर्ति मार्गों को बंद करते हुए शिवाजी की सेना को घेर लिया | पन्हाला में बमबारी के दौरान सिद्दी जौहर ने अपनी युद्ध क्षमता बढ़ाने के लिए अंग्रेजो से हथगोले खरीद लिए थे और साथ ही कुछ बमबारी करने के लिए कुछ अंग्रेज तोपची भी नियुक्त किये थे |इस कथित विश्वासघात से शिवाजी नाराज हो गये क्योंकि उन्होंने एक राजापुर के एक अंगरेजी कारखानेसे हथगोले लुटे थे |
घेराबंदी के बाद अलग अलग लेखो में अलग अलग बात बताई गयी है जिसमे से एक लेख में शिवाजी बचकर भाग जाते है और इसके बाद आदिल शाह खुद किले में हमला करने आता है और चार महीनो तक घेराबंदी के बाद किले पर कब्जा कर लेता है | दुसरे लेखो में घेराबंदी के बाद शिवाजी सिद्दी जौहर से बातचीत कर विशालगढ़ का किला उसको सौप देते है | शिवाजी के समर्पण या बच निकलने पर भी विवाद है | लेखो के अनुसार शिवाजी रात के अँधेरे में पन्हला से निकल जाते है और दुश्मन सेना उनका पीछा करती है |
मराठा सरदार बंदल देशमुख के बाजी प्रभु देशपांडे अपने 300 सैनिको के साथ स्वेच्छा से दुश्मन सेना को रोकने के लिए लड़ते है और कुछ सेना शिवाजी को सुरक्षित विशालगढ़ के किले तक पंहुचा देती है |पवन खिंड के युद्ध में छोटी मराठा सेना विशाल दुश्मन सेना को रोककर शिवाजी को बच निकलने का समय देती है | बाजी प्रभु देशपांडे इस युद्ध में घायल होने के बावजूद लड़ते रहे जब तक कि विशालगढ़ से उनको तोप की आवाज नही आ गयी | तोप की आवाज इस बात का संकेत था कि शिवाजी सुरक्षित किले तक पहुच गये है |
शिवाजी का मुगलों के साथ संघर्ष और शाइस्ता खाँ पर हमला
1657 तक शिवाजी ने मुगल साम्राज्य के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाये | शिवाजी ने बीजापुर पर कब्ज़ा करने में औरंगजेब को सहायता देने का प्रस्ताव दिया और बदले में उसने बीजापुरी किलो और गाँवों को उसके अधिकार में देने की बात कही | शिवाजी का मुगलों से टकराव 1657 में शुरू हुआ जब शिवाजी के दो अधिकारियो ने अहमदनगर के करीब मुगल क्षेत्र पर आक्रमण कर लिया |इसके बाद शिवाजी ने जुनार पर आक्रमण कर दिया और 3 लाख सिक्के और 200 घोड़े लेकर चले गये | औरंगजेब ने जवाबी हमले के लिए नसीरी खान को आक्रमण के लिए भेजा जिसने अहमदनगर में शिवाजी की सेना को हराया था | लेकिन औरंगजेब का शिवाजी के खिलाफ ये युद्ध बारिश के मौसम और शाहजहा की तबियत खराब होने की वजह से बाधित हो गया|
बीजापुर की बड़ी बेगम के आग्रह पर औरंगजेब ने उसके मामा शाइस्ता खाँ को 150,000 सैनिको के साथ भेजा | इस सेना ने पुणे और चाकन के किले पर कब्ज़ा कर आक्रमण कर दिया और एक महीने तक घेराबंदी की | शाइस्ता खाँ ने अपनी विशाल सेना का उपयोग करते हुए मराठा प्रदेशो और शिवाजी के निवास स्थान लाल महल पर आक्रमण कर दिया | शिवाजी ने शाइस्ता खाँ पर अप्रत्याशित आक्रमण कर दिया जिसमे शिवाजी और उनके 200 साथियों ने एक विवाह की आड़ में पुणे में घुसपैठ कर दी | महल के पहरेदारो को हराकर ,दीवार पर चढ़कर शहिस्ता खान के निवास स्थान तक पहुच गये और वहा जो भी मिला उसको मार दिया | शाइस्ता खाँ की शिवाजी से हाथापाई में उसने अपना अंगूठा गवा दिया और बच कर भाग गया | इस घुसपैठ में उसका एक पुत्र और परिवार के दुसरे सदस्य मारे गये | शाइस्ता खाँ ने पुणे से बाहर मुगल सेना के यहा शरण ली और औरंगजेब ने शर्मिंदगी के मारे सजा के रूप में उसको बंगाल भेज दिया |
शाइस्ता खाँ ने एक उज़बेक सेनापति करतलब खान को आक्रमण के लिए भेजा | 30000 मुगल सैनिको के साथ वो पुणे के लिए रवाना हुए और प्रदेश के पीछे से मराठो पर अप्रत्याशित हमला करने की योजना बनाई | उम्भेरखिंड के युद्ध में शिवाजी की सेना ने पैदल सेना और घुड़सवार सेना के साथ उम्भेरखिंड के घने जंगलो में घात लगाकर हमला किया |शाइस्ता खाँ के आक्रमणों का प्रतिशोध लेने और समाप्त राजकोष को भरने के लिए 1664 में शिवाजी ने मुगलों के ब्यापार केंद्र सुरत को लुट लिया |
औरंगजेब ने गुस्से में आकर मिर्जा राजा जय सिंह I को 150,000 सैनिको के साथ भेजा |जय सिंह की सेना ने कई मराठा किलो पर कब्जा कर लिया और शिवाजी को ओर अधिक किलो को खोने के बजाय औरंगजेब से शर्तो के लिए बाध्य किया | जय सिंह और शिवाजी के बीच पुरन्दर की संधि हुयी जिसमे शीवाजी ने अपने 23 किले सौप दिए और जुर्माने के रूप में मुगलों को 4 लाख रूपये देने पड़े| उन्होंने अपने पुत्र साम्भाजी को भी मुगल सरदार बनकर औरंगजेब के दरबार में सेवा की बात पर राजी हो गये |शिवाजी के एक सेनापति नेताजी पलकर धर्म परिवर्तन कर मुगलों में शामिल हो गये और उनकी बाहदुरी को पुरुस्कार भी दिया गया |मुगलों की सेवा करने के दस वर्ष बाद वो फिर शिवाजी के पास लौटे और शिवाजी के कहने पर फिर से हिन्दू धर्म स्वीकार किया |
1666 में औरंगजेब ने शिवाजी को अपने नौ साल के पुत्र संभाजी के साथ आगरा बुलाया | औरंगजेब की शिवाजी को कांधार भेजने की योजना थी ताकि वो मुगल साम्राज्य को पश्चिमोत्तर सीमांत संघटित कर सके | 12 मई 1666 को औरंगजेब ने शिवाजी को दरबार में अपने मनसबदारो के पीछे खड़ा रहने को कहा| शिवाजी ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोध में दरबार पर धावा बोल दिया | शिवाजी को तुरंत आगरा के कोतवाल ने गिरफ्तार कर लिया |
शिवाजी को आगरा में बंदी बनाना और बच कर निकल जाना
"शिवाजी का आदिलशाही सल्तनत के साथ संघर्ष
शिवाजी ने कई बार बीमारी का बहाना बनाकर औरंगजेब को धोखा देकर डेक्कन जाने की प्रार्थना की | हालांकि उनके आग्रह करने पर उनकी स्वास्थ्य की दुवा करने वाले आगरा के संत ,फकीरों और मन्दिरों में प्रतिदिन मिठाइयाँ और उपहार भेजने की अनुमति दी | कुछ दिनों तक ये सिलसिला चलने के बाद शिवाजी ने संभाजी को मिठाइयो की टोकरी में बिठाकर और खुद मिठाई की टोकरिया उठाने वाले मजदूर बनकर वहा से भाग गये |इसके बाद शिवाजी और उनका पुत्र साधू के वेश में निकलकर भाग गये |भाग निकलने के बाद शिवाजी ने खुद को और संभाजी को मुगलों से बचाने के लिए संभाजी की मौत की अपवाह फैला दी |इसके बाद संभाजी को विश्वनीय लोगो द्वारा आगरा से मथुरा ले जाया गया |
शिवाजी के बच निकलने के बाद शत्रुता कमजोर हो गयी और संधि की शर्ते 1670 के अंत तक खत्म हो गयी | इसके बाद शिवाजी ने एक मुगलों के खिलाफ एक बड़ा आक्रमण किया और चार महीनों में उन्होंने मुगलों द्वारा छीने गये प्रदेशो पर फिर कब्जा कर लिया | इस दौरान तानाजी मालुसरे ने सिंघाड़ का किला जीत लिया था | शिवाजी दुसरी बार जब सुरत को लुट करआ रहे थे तो दौड़ खान के नेतृत्व में मुगलों ने उनको रोकने की कोशिश की लेकिन उनको शिवाजी ने युद्ध में परास्त कर दिया | अक्टूबर 1670 में शिवाजी ने अंग्रेजो को परेशान करने के लिए अपनी सेना बॉम्बे भेजी , अंग्रेजो ने युद्ध सामग्री बेचने से मना कर दिया तो उनकी सेना से बॉम्बे की लकड़हारो के दल को अवरुद्ध करदिया |
नेसारी की जंग और शिवाजी का राज्याभिषेक
1674 में मराठा सेना के सेनापति प्रतापराव गुर्जर को आदिलशाही सेनापति बहलोल खान की सेना पर आक्रमण के लिए बोला | प्रतापराव की सेना पराजित हो गयी और उसे बंदी बना लिया | इसके बावजूद शिवाजी ने बहलोल खान को प्रतापराव को रिहा करने की धमकी दी वरना वो हमला बोल देंगे | शिवाजी ने प्रतापराव को पत्र लिखकर बहलोल खान की बात मानने से इंकार कर दिया | अगले कुछ दिनों में शिवाजी को पता चला कि बहलोल खान की 15000 लोगो की सेना कोल्हापुर के निकट नेसरी में रुकी है | प्रतापराव और उसके छ: सरदारों ने आत्मघाती हमला कर दिया ताकि शिवाजी की सेना को समय मिल सके | मराठो ने प्रतापराव की मौत का बदला लेते हुए बहलोल खान को हरा दिया और उनसे अपनी जागीर छीन ली | शिवाजी प्रतापराव की मौत से काफी दुखी हुए और उन्होंने अपने दुसरे पुत्र की शादी प्रतापराव की बेटी से कर दी |
शिवाजी ने अब अपने सैन्य अभियानों से काफी जमीन और धन अर्जित कर लिया लेकिन उन्हें अभी तक कोई औपचारिक ख़िताब नही मिला था | एक राजा का ख़िताब ही उनको आगे आने वाली चुनौती से रोक सकता था | शिवाजी को रायगढ़ में मराठो के राजा का ख़िताब दिया गया | पंडितो ने सात नदियों के पवित्र पानी से उनका राज्याभिषेक किया | अभिषेक के बाद शिवाजी ने जीजाबाई से आशीर्वाद लिया | उस समारोह में लगभग रायगढ़ के 5000 लोग इक्ठटा हुए थे | शिवाजी को छत्रपति का खिताब भी यही दिया गया |राज्याभिषेक के कुछ दिनों बाद जीजाबाई की मौत हो गयी | इसे अपशकुन मानते हुए दुसरी बार राज्याभिषेक किया गया|
दक्षिणी भारत में विजय और शिवाजी के अंतिम दिन
1674 की शुरुवात में मराठो ने एक आक्रामक अभियान चलाकर खानदेश पर आक्रमण कर बीजापुरी पोंडा , कारवार और कोल्हापुर पर कब्जा कर लिया |इसके बाद शिवाजी ने दक्षिण भारत में विशाल सेना भेजकर आदिलशाही किलो को जीता | शिवाजी ने अपने सौतेले भाई वेंकोजी से सामजंस्य करना चाहा लेकिन असफल रहे इसलिए रायगढ़ से लौटते वक्त उसको हरा दिया और मैसूर के अधिकतर हिस्सों पर कब्जा कर लिया |
1680 में शिवाजी बीमार पड़ गये और 52 वर्ष की उम्र में इस दुनिया से चले गये | शिवाजी के मौत के बाद उनकी पत्नी सोयराबाई ने उसके पुत्र राजाराम को सिंहासन पर बिठाने की योजना बनाई | संभाजी महाराज की बजाय 10 साल के राजाराम को सिंहासन पर बिठाया गया | हालांकि संभाजी ने इसके बाद सेनापति को मारकर रायगढ़ किले पर अधिकार कर लिया और खुद सिंहासन पर बैठ गया | संभाजी महाराज ने राजाराम , उसकी पत्नी जानकी बाई को कारावास भेज दिया और माँ सोयराबाई को साजिश के आरोप में फांसी पर लटका दिया |संभाजी महाराज इसके बाद वीर योद्धा की तरह कई वर्षो तक मराठो के लिए लड़े | शिवाजी के मौत के बाद 27 वर्ष तक मराठो का मुगलों से युद्ध चला और अंत में मुगलों को हरा दिया | इसके बाद अंग्रेजो ने मराठा साम्राज्य को समाप्त किया था |