totalbhakti logo
facebook icon
upload icon
twitter icon
home icon
home icon
style
graypatti

Download Index » Download Vratkatha » Pradosh Vrat Katha
Free Ringtones Button Free Ringtones Button Free Ringtones Button Free Ringtones Button
Pradosh-Vrat
Free Ringtones Button



PRADOSH VRAT KATHA

प्रदोष व्रत कथा

अत्यंत मंगलकारी और शिवकृपा प्रदान करने वाला " प्रदोष व्रत" प्रत्येक मास के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता है। यह एक ऐसा व्रत है जिसमें सभी वारों की अलग- अलग कथा व महत्व बताया गया है. रविवार के दिन प्रदोष व्रत रखा जाए तो व्रत करने वाला सदा निरोगी रहता हैं। सोमवार के दिन व्रत धारण करने से सभी इच्छायें फ़लित होती हैं। मंगलवार को प्रदोष व्रत रखने से सभी रोगो से मुक्ति तथा अच्छा स्वास्थ्य मिलता है। बुधवार का व्रत कामना सिद्धि के लिये होता है। वृहस्पति वार के व्रत से शत्रु का नाश होता है। शुक्र प्रदोष व्रत सौभाग्य में वृद्धि करता है, तो शनि प्रदोष व्रत से पुत्र की प्राप्ति होती है। इस दिन सूर्यास्त के समय स्नान करके, लाल कनेर के पुष्प, लाल चन्दन और धूप-दीपादि से श्रद्धापूर्वक भगवान शिव का पूजन करें। शिवपूजन करके प्रदोष-समय में एक बार भोजन करें।
वृहस्पति त्रयोदशी - प्रदोष व्रत
एक बार इन्द्र और राक्षराज वृत्रासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ । देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला । यह देख वृत्रासुर अत्यन्त क्रोधित हो स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ । आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया । सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहुँचे । बृहस्पति देव बोले- पहले मैं तुम्हे वृत्रासुर का वास्तविक परिचय दे दूं । वृत्रासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है । उसने गन्धमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिव जी को प्रसन्न किया । पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था । एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया । वहां शिव जी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- 'हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं । किन्तु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।' चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिवशंकर हंसकर बोले- 'हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है । मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारण जन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो! माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुई- 'अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्व र के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है । इसलिये मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू कभी ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं । जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हो त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बना । गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है । अतः हे इन्द्र तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो। देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया । गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इन्द्र ने शीघ्र ही वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में सुख शान्ति छा गई ।

 

Copyright © Totalbhakti.com, 2008. All Rights Reserved