SUNDERKAND
सुन्दरकाण्ड
दो.- रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर ।
अस कहि कपि गदगद भयउ भरे बिलोचन नीर ।। 14 ।।
कहेउ राम बियोग तव सीता । मो कहुँ सकल भए बिपरीता ।।
नव तरू किसलय मनहुँ कृसानू । कालनिसा सम निसि ससि भानू ।।
कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा । बारिद तपत तेल जनु बरिसा ।।
जे हित रहे करत तेइ पीरा । उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा ।।
कहेहू तें कछु दुख घटि होई । काहि कहौं यह जान न कोई ।।
तत्व प्रेम कर मम अरू तोरा । जानत प्रिया एकु मनु मोरा ।।
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं । जानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं ।।
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही । मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही ।।
कह कपि हृदयँ धीर धरु माता । सुमिरू राम सेवक सुखदाता ।।
उर आनहु रघुपति प्रभुताई । सुनि मम बचन तजहु कदराई ।।
दो.- निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु ।
जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु ।। 15 ।।
जौं रघुबीर होति सुधि पाई । करते नहिं बिलंबु रघुराई ।।
राम बान रबि उएँ जानकी । तम बरूथ कहँ जातुधन की ।।
अकहिं मातु मैं जाउँ लवाई । प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई ।।
कछुक दिवस जननी धरु धीरा । कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा ।।
निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं । तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं ।।
हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना । जातुधन अति भट बलवाना ।।
मोरें हृदय परम संदेहा । सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा ।।
कनक भूधराकार सरीरा । समर भयंकर अतिबल बीरा ।।
सीता मन भरोस तब भयऊ । पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ ।।
दो.- सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल ।
प्रभु प्रताप तें गरूड़हि खाइ खाइ परम लघु ब्याल ।। 16 ।।
मन संतोष सुनत कपि बानी । भगति प्रताप तेज बल सानी ।।
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना । होहु तात बल सील निधना ।।
अजर अमर गुननिधि होहू । करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ।।
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना । निर्भर प्रेम मगन हनुमाना ।।