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SUNDERKAND

सुन्दरकाण्ड

उमा संत कइ इहइ बड़ाई । मंद करत जो करइ भलाई ।।
तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा । रामु भजें हित नाथ तुम्हारा ।।
सचिव संग लै नभ पथ गयऊ । सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ ।।

दो. - रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि ।
मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि ।। 41 ।।

अस कहि चला बिभीषनु जबहीं । आयूहीन भए सब तबहीं ।।
साधु अवग्या तुरत भवानी । कर कल्यान अखिल कै हानी ।।
रावन जबहिं बिभीषन त्यागा । भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा ।।
चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं । करत मनोरथ बहु मन माहीं ।।
देखिहउँ जाइ चरन जलजाता । अरून मृदुल सेवक सुखदाता ।।
जे पद परसि तरी रिषिनारी । दंडक कानन पावनकारी ।।
जे पद जनकसुताँ उर लाए । कपट कुरंग संग धर धाए ।।
हर उर सर सरोज पद जेई । अहोभाग्य मैं देखिहउँ तेई ।।

दो. - जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ ।
ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ ।। 42 ।।

एहि बिधि करत सप्रेम बिचारा । आयउ सपदि सिंधु एहिं पारा ।।
कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा । जाना कोउ रिपु दूत बिसेषा ।।
ताहि राखि कपीस पहिं आए । समाचार सब ताहि सुनाए ।।
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई । आवा मिलन दसानन भाई ।।
कह प्रभु सखा बूझिऐ काहा । कहइ कपीस सुनहु नरनाहा ।।
जानि न जाइ निसाचर माया । कामरूप केहि कारन आया ।।
भेद हमार लेन सठ आवा । राखिअ बाँधि मोहि अस भावा ।।
सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी । मम पन सरनागन भयहारी ।।
सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना । सरनागत बच्छल भगवाना ।।

दो. - सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि ।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि ।। 43 ।।

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू । आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ।।
सनमुख होइ जीव मोहि जबहिं । जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ।।
पापवंत कर सहज सुभाऊ । भजनु मोर तेहि भाव न काऊ ।।

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