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SUNDERKAND

सुन्दरकाण्ड

मिले सकल अति भए सुखारी । तलफ़ल मीन पाव जिमि बारी ।।
चले हरषि रघुनायक पासा । पूँछत कहत नवल इतिहासा ।।
तब मधुबन भीतर सब आए । अंगद संमत मधु फ़ल खाए
रखवारे जब बरजन लागे । मुष्टि प्रहार हनत सब भागे ।।

दो. - जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज ।
सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज ।। 28 ।।

जौं न होति सीता सुधि पाई । मधुबन के फ़ल सकहिं कि खाई।।
एहि बिधि मन बिचार कर राजा । आइ गए कपि सहित समाजा ।।
आइ सबन्हि नावा पद सीसा । मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा ।।
पूँछी कुसल कुसल पद देखी । राम कृपाँ भा काजु बिसेषी ।।
नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना । राखे सकल कपिन्ह के प्राना ।।
सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ । कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ ।।
राम कपिन्ह जब आवत देखा । किएँ काजु मन हरष बिसेषा ।।
फटिक सिला बैठे द्वौ भाई । परे सकल कपि चरनन्हि जाई ।।

दो. - प्रीति सहित सब भेटे रघुपति करूना पुंज ।
पूँछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज ।। 29 ।।

जामवंत कह सुनु रघुराया । जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया ।।
ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर । सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर ।।
सोइ बिजई बिनई गुन सागर । तासु सुजसु त्रौलोक उजागर ।।
प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू । जन्म हमार सुफल भा आजू ।।
नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी । सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी ।।
पवनतनय के चरित सुहाए । जामवंत रघुपतिहि सुनाए ।।
सुनत कृपानिधि मन अति भाए । पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए ।।
कहहु तात केहि भाँति जानकी । रहति करति रच्छा स्वप्रान की ।।

दो. - नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट ।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट ।। 30 ।।

चलत मोहि चूड़ामनि दीन्ही । रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही ।।
नाथ जुगल लोचन भरि बारी । बचन कहे कछु जनककुमारी ।।
अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना । दीन बंधु प्रनतारति हरना ।।
मन क्रम बचन चरन अनुरागी । केहिं अपराध नाथ हौं त्यागी ।।

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