SUNDERKAND
सुन्दरकाण्ड
अवगुन एक ओर मैं माना । बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना ।।
नाथ सो नयहन्हि को अपराधा । निसरत प्रान करहिं हठि बाध ।।
बिरह अगिनि तनु तूल समीरा । स्वास जरइ छन माहिं सरीरा ।।
नयन स्त्रवहिं जलु निज हित लागी । जरैं न पाव देह बिरहागी ।।
सीता कैं अति बिपति बिसाला । बिनहिं कहें भलि दीनदयाला ।।
दो. - निमिष निमिष करूनानिधि जाहिं कलप सम बीति ।
बेगि चलिअ प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति ।। 31 ।।
सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना । भरि आए जल राजिव नयना ।।
बचन कायँ मन मम गति जाही । सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताहि ।।
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई । जब तव सुमिरन भजन न होई ।।
केतिक बात प्रभु जातुधान की । रिपुहि जीति आनिबी जानकी ।।
सुनु कपि तोहि समान उपकारी । नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी ।।
प्रति उपकार करौं का तोरा । सनमुख होइ न सकत मन मोरा ।।
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं । देखेउँ करि बिचार मन माहीं ।।
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता । लोचन नीर पुलक अति गाता ।।
दो. - सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत ।
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत ।। 32 ।।
बार बार प्रभु चहइ उठावा । प्रेम मगन तेहि उठब न भावा ।।
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा । सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा ।।
सावधन मन करि पुनि संकर । लागे कहन कथा अति सुंदर ।।
कपि उठाइ प्रभु हृदयँ लगावा । कर गहि परम निकट बैठावा ।।
कहु कपि रावन पालित लंका । केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका ।।
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना । बोला बचन बिगत अभिमाना ।।
साखामृग कै बड़ि मनुसाई । साखा तें साखा पर जाई ।।
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा । निसिचर गन बधि बिपिन उजारा ।।
सो सब तव प्रताप रघुराई । नाथ न कछू मोरि प्रभुताई ।।
दो. - ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकुल ।
तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल ।। 33 ।।