SUNDERKAND
सुन्दरकाण्ड
नाथ भगति अति सुखदायनी । देहु कृपा करि अनपायनी ।।
सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी । एवमस्तु तब कहेउ भवानी ।।
उमा राम सुभाउ जेहिं जाना । ताहि भजनु तजि भाव न आना ।।
यह संबाद जासु उर आवा । रघुपति चरन भगति सोइ पावा ।।
सुनि प्रभु बचन कहहिं कपिबृंदा । जय जय जय कृपाल सुखकंदा ।।
तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा । कहा चलैं कर करहु बनावा ।।
अब बिलंबु केहि कारन कीजे । तुरत कपिन्ह कहुँ आयसु दीजे ।।
कौतुक देखि सुमन बहु बरषी । नभ तें भवन चले सुर हरषी ।।
दो. - कपिपति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ ।
नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ ।। 34 ।।
प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा । गर्जहिं भालु महाबल कीसा ।।
देखी राम सकल कपि सेना । चितइ कृपा करि राजिव नैना ।।
राम कृपा बल पाइ कपिंदा । भए पच्छजुत मनहुँ गिरिंदा ।।
हरषि राम तब कीन्ह पयाना । सगुन भए सुंदर सुभ नाना ।।
जासु सकल मंगलमय कीति । तासु पयान सगुन यह नीती ।।
प्रभु पयान जाना बैदेहीं । फरकि बाम अँग जनु कहि देहीं ।।
जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई । असगुन भयउ रावनहि सोई ।।
चला कटकु को बरनै पारा । गर्जहिं बानर भालु अपारा ।।
नख आयुध गिरि पादपधरी । चले गगन महि इच्छाचारी ।।
केहरिनाद भालु कपि करहिं । डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं ।।
छं. - चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे ।
मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किंनर देख टरे ।।
कटकअहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं ।
जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं ।। 1 ।।
सहि सक न भार उदार अहिपति बार बारहिं मोहई ।
गह दसन पुनि पुनि कमठ पृष्ट कठोर सो किमि सोहई ।।
रघुबीर रूचिर प्रयान प्रस्थिति जानि परम सुहावनी ।
जनु कमठ खर्पर सर्पराज सो लिखत अबिचल पावनी ।। 2 ।।
दो. - एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर ।
जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर ।। 35 ।।